मुस्लिम समाज अपने अलग तौर-तरीको के लिए जाना जाता है। जिसके कई सारे उदाहरण है, जैसे कि मुस्लिम समाज में सुअर बोलना और शराब पीना हराम माना जाता है। ऐसा क्यो है ये तो मुस्लिम समाज के होनहार मौलाना ही बता सकते है। इसके अलावा आपने जरुर सुना होगा कि मुस्लिम समाज में बचपन से ही लड़को का खतना किया जाता है, लेकिन अगर हम कहे कि, बोहरा मुस्लिम समाज में महिलाओं का भी खतना कराया जाता है। तो शायद इस पर आपके लिए विश्वास कर पाना मुश्किल होगा। लेकिन ख़बर लाज़मी की इस स्पेशल रिर्पोंट को पढ़ने के बाद इस बारे में पूरी तरह जान पाएगें।
बोहरा मुस्लिम समाज में महिलाओं के खतना का खूलासा किया “निशरीन सैफ़” ने
जी हां बोहरा मुस्लिम समाज में महिलाऔ का भी खतना कराया जाता था। BBC के अनुसार भारत समेत दुनिया के कई देशो में जिसमें ऐसा कराया गया था। पुणे में रहने वाली निशरीन सैफ़ के साथ ऐसा ही कुछ हुआ था। उन्होंने ने BBC से हुई अपनी वर्ता में बताया कि, “तब मैं तक़रीबन सात साल की रही होऊंगी। उन्होने कहा कि, मुझे ठीक से याद नहीं है लेकिन उस घटना की एक धुंधली सी तस्वीर मेरे जहन में आज भी मौजूद है.” निशरीन ने बताया, “मां मुझे अपने साथ लेकर घर से निकलीं और हम एक छोटे से कमरे में पहुंचे जहां एक औरत पहले से बैठी थी। उसने मुझे लिटाया और मेरी पैंटी उतार दी”
निशरीन सैफ़ ने आगे बताया कि ,”उस वक़्त तो ज़्यादा दर्द नहीं हुआ, बस ऐसा लगा जैसे कोई सुई चुभो रहा है। असली दर्द सब कुछ होने के बाद महसूस हुआ। बहुत दिनों तक पेशाब करने में बेहद तकलीफ़ होती थी। मैं दर्द से रो पड़ती थी”
निशरीन जब बड़ी हुईं तो उन्हें पता चला कि उनका खतना किया गया था।
ज्यादातर लोगो को सिर्फ यही पता है कि, बस पुरुषों का खतना किया जाता है लेकिन वह सब इस बात से अनजान है कि, दुनिया के कई देशों में महिलाओँ को भी इस दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जिसमे भारत भी शामिल है। बता दें यहां इस प्रथा का चलन बोहरा मुस्लिम समुदाय (दाऊदी बोहरा और सुलेमानी बोहरा) में देखा जाता है।
महिलाओं का खतना क्या है ?
महिलाओँ का खतने को ‘ख़फ़्ज़‘ या ‘फ़ीमेल जेनाइटल म्युटिलेशन’ (एफ़जीएम) भी कहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र से जारी एक परिभाषा के मुताबिक, “एफ़जीएम की प्रक्रिया के दौरान लड़की के जननांग के बाहरी हिस्से को काट दिया जाता है या इसकी बाहरी त्वचा निकाल दी जाती है।”
‘क्लिटरिस’ को बोहरा समाज में कहा जाता है। ‘हराम की बोटी‘
- लड़कियो का खतना 6 से 7 साल की कम उम्र में ही करा दिया जाता है। क्योकी उस उम्र में बच्चे की चमड़ी मुलायम होती है। जिसे कटाने पर ज्यादा दर्द महसुस नही होता है।
- खतना को करने से पहले एनीस्थीसिया भी नहीं दिया जाता है। बच्चियां पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से बुरी तरह करहातें हुए चिखती रहती है।
- बोहरा मुस्लिम के अनुसार इससे लड़की की यौन इच्छा बढ़ती है। लेकिन इस पर कोई वैज्ञानिक टिप्पणी नही देखी गई है।
- खतना को ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल करके किया जाता हैं और खतना के बाद छोटे-मोटे मरहम लगाकर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है।
- बोहरा मुस्लिम समुदाय के मुताबिक ‘क्लिटरिस’ को उनके समाज में ‘हराम की बोटी‘ कहा जाता है।
लड़को के खतना के पीछे हैं ये वजह
मुस्लिम समाज में लड़को का भी खतना किशोरावस्था में ही कराया जाता है। विशेषज्ञो के अनुसार खतना के पीछे का कारण है कि, लड़को के शरीर को AIDS जैसे बाहरी इन्फेक्शन से बचाने के लिए ही ऐसा कराया जाता है। जी हां लड़के अपने लिंग की आगे की चमड़ी के साथ जन्म लेते हैं। वह चमड़ी जो लिंग मुंड को ढके रहती है। जब किसी लड़के या पुरुष का खतना किया जाता है, तो उनके लिंग के आगे की चमड़ी निकाल दी जाती है। जिससे लिंग मुंड दिखने लगता है। आपकी अधिक जानकारी के लिए बता दें कि खतना न केवल मुस्लिम में बल्कि काफी सारे दूसरे धर्मों में भी कराया जाता है। इसको कराने का सीधा ताल्लुकात जुड़ा होता है लड़को के स्वास्थ्य से, जी हां खतना में स्वास्थ्य के हिसाब से बहुत सारे फायदे देखे जाते हैं।
Discussion about this post